किसी भी पद कि गरिमा उस पर बैठे सच्चे,अच्छे,देशभक्त व इमानदार लोगों से होती है ,क्या हमारे देश में प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति पद पे पद कि गरिमा के अनुसार व्यक्ति विराजमान है ......? जवाब जरूर दीजिये इस असहाय मगर बहादुर माँ के पत्र को पढ़कर .....शहीद चंद्रशेखर और उनकी माँ को हमारा हार्दिक सलाम ...
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शहीद चंद्रशेखर जिसने इस देश कि व्यवस्था के कोढ़ से लड़ते हुए अपनी आहुति दे दी ,जो काम इस देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को करना चाहिए था वो काम इस बहादुर व निडर शहीद ने किया | ऐसे लोग इस देश व समाज में सत्य,न्याय,देशभक्ति व ईमानदारी के असल रक्षक है ना कि आज के हमारे देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति जो एक शहीद के हत्यारों को पकड़ कर फांसी तक नहीं दे सकते | लानत है ऐसे प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति पर .... |
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'' प्रधानमन्त्री महोदय , आपका पत्र और बैंक ड्राफ्ट मिला |
आप शायद जानते हों कि चंद्रशेखर मेरी इकलौती संतान था | उसके सैनिक पिता जब शहीद हुए थे , वह बच्चा ही था | आप जानिये , उस समय मेरे पास मात्र १५० रूपये थे | तब भी मैंने किसी से कुछ नहीं माँगा था | अपनी मेहनत और इमानदारी की कमाही से मैंने उसे राजकुमारों की तरह पाला था | पाल पोस कर बड़ा किया था और बढियां से बढियां स्कूल में उसे पढ़ाया था | मेहनत और इमानदारी की वह कमाही अभी भी मेरे पास है | कहिये , कितने का चेक काट दूँ |
लेकिन महोदय , आपको मेहनत और इमानदारी से क्या लेना देना ! आपको मेरे बेटे की 'दुखद मृत्यु' के बारे में जानकार गहरा दुःख हुआ है , आपका यह कहना तो हद है महोदय ! मेरे बेटे की मृत्यु नहीं हुई है | उसे आप ही के दल के गुंडे , माफिया डॊन सांसद शहाबुद्दीन ने - जो दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद का दुलरुआ भी है - खूब सोच-समझकर व योजना बनाकर मार डाला है | लगातार खुली धमकी देने के बाद , शहर के भीड़-भाड़ भरे चौराहे पर सभा करते हुए , गोलियों से छलनी कर देने के पीछे कोई ऊँची साजिश है | प्रधानमंत्री महोदय ! मेरा बेटा शहीद हुआ है वह दुर्घटना में नहीं मरा है |
मेरा बेटा कहा करता था कि मेरी माँ बहादुर है | वह किसी से भी डरती नहीं , वह किसी भी लोभ-लालच में नहीं पड़ती | वह कहता था - मैं एक बहादुर माँ का बहादुर बेटा हूँ | शहाबुद्दीन ने लगातार मुझे कहलवाया था कि अपने बेटे को मना कर लो नहीं तो उठवा लूंगा | मैंने जब यह बात उसे बतलाई तब उसने यही कहा था | ३१ मार्च की शाम को जब मैं भागी भागी अस्पताल पहुँची वह इस दुनिया से जा चुका था | मैंने खूब गौर से उसका चेहरा देखा , उसपर कोई शिकन नहीं थी | डर या भय का कोई चिह्न नहीं था | एकदम से शांत चेहरा था उसका , प्रधानमंत्री महोदय लगता था वह अभी उठेगा और चल देगा | जबकि , प्रधानमंत्री महोदय ! उसके सर और सीने में एक-दो नहीं सात-सात गोलियां मारी गयी थीं | बहादुरी में उसने मुझे भी पीछे छोड़ दिया |
मैंने कहा न कि वह मर कर भी अमर है | उस दिन से ही हज़ारों छात्र-नौजवान , जो उसके संगी-साथी हैं , जो हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी , मुझसे मिलने आ रहे हैं | उन सबमें मुझे वह दिखाई देता है | हर तरफ , धरती और आकाश तक में , मुझे हज़ारों-हज़ार चंद्रशेखर दिखाई दे रहे हैं | वह मरा नहीं है प्रधानमंत्री महोदय !
इसीलिये इस एवज में कोई भी राशि लेना मेरे लिए अपमानजनक है | आपके कारिंदे पहले भी आकर लौट चुके हैं | मैंने उनसे भी यही सब कहा था | मैंने उनसे कहा था कि तुम्हारे पास चारा घोटाला का , भूमि घोटाला का , अलकतरा घोटाला का जो पैसा है , उसे अपने पास ही रखो | यह उस बेटे की कीमत नहीं है जो मेरे लिए सोना था , रतन था , सोने व रतन से भी बढ़कर था | आज मुझे यह जानकार और भी दुःख हुआ कि इसकी सिफारिश आपके गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्त ने की थी | वे उस पार्टी के महासचिव रह चुके हैं जहां से मेरे बेटे ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी | मुझ अनपढ़ -गंवार माँ के सामने आज यह बात और भी साफ़ हो गयी कि मेरे बेटे ने बहुत जल्दी ही उनकी पार्टी क्यों छोड़ दी थी | इस पत्र के माध्यम से मैं आपके साथ-साथ उनपर भी लानतें भेज रही हूँ जिन्होंने मेरी भावना के साथ घिनौना मजाक किया है और मेरे बेटे की जान की ऐसी कीमत लगवाई है |
एक माँ के लिए - जिसका इतना बड़ा और इकलौता बेटा मार दिया गया हो और , जो यह भी जानती हो कि उसका कातिल कौन है - एकमात्र काम जो हो सकता है , वह यह है कि कातिल को सजा मिले | मेरा मन तभी शांत होगा महोदय ! उसके पहले कभी नहीं , किसी भी कीमत पर नहीं | मेरी एक ही जरूरत है , मेरी एक ही मांग है - अपने दुलारे शहाबुद्दीन को 'किले' से बाहर करो , या तो उसे फांसी दो , या फिर लोगों को यह हक़ दो कि वे उसे गोली से उड़ा दें |
मुझे पक्का विश्वास है प्रधानमंत्री महोदय ! आप मेरी मांग पूरी नहीं करेंगे | भरसक यही कोशिश करेंगे कि ऐसा न होने पाए | मुझे अच्छी तरह मालूम है कि आप किसके तरफदार हैं | मृतक के परिवार को तत्काल राहत पहुचाने हेतु स्वीकृत एक लाख रूपये का यह बैंक-ड्राफ्ट आपको ही मुबारक ! कोई भी माँ अपने बेटे के कातिलों से सुलह नहीं कर सकती | ''
पटना --- कौशल्या देवी
१८ अप्रैल १९९७ ( शहीद चंद्रशेखर की माँ )
बिन्दुसार , सीवान
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यह पत्र हमने अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी के ब्लॉग से साभार लिया है और इसे जनहित में हमने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया है | हमारा सभी ब्लोगरों से आग्रह है कि आप भी अपने ब्लॉग पर इस दर्दनाक व प्रेरक पत्र को प्रकाशित जरूर करें .... यही सार्थक ब्लोगिंग है ... त्रिपाठी जी का यह पोस्ट अत्यंत सराहनीय है जिसके लिए हम उनका हार्दिक धन्यवाद भी करते है ....