शनिवार, 31 जुलाई 2010

सच्चा कौन मनमोहन सिंह जी या देश के CVC का जाँच रिपोर्ट .....

देश कि व्यवस्था में पारदर्शिता तथा इस देश के गरीब जनता के टेक्स के पैसे जो की वह एक माचिस की खरीद पर भी अदा करता है की बर्बादी कि हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मनमोहन सिंह जी जो देश के प्रधानमंत्री जैसे सम्माननीय पद पर बैठकर कॉमनवेल्थ गेम प्रोजेक्ट में सब कुछ ठीक होने कि बात कर रहें हैं और देश कि सबसे बड़ी जाँच एजेंसी जो जनता के लिए पारदर्शिता और भ्रष्टाचार को रोकने का काम करती है के जाँच रिपोर्ट में कॉमनवेल्थ गेम में  सैकड़ों कड़ोर के घोटाले तथा घटिया निर्माण के साथ-साथ वेवजह निर्माण का भी आरोप लगाया गया है ,पढ़ें इस लिंक पर- 


अब सवाल उठता है कि सच्चा कौन है और झूठा कौन ...? यहाँ एक बात महत्वपूर्ण है कि जमीनी स्तर पर अगर कोई भी इमानदार पत्रकार,समाजसेवक या आम नागरिक कॉमनवेल्थ गेम के प्रोजेक्ट कि निगरानी या निरिक्षण करे तो CVC की रिपोर्ट एकदम सच्ची प्रतीत होती है | ऐसे में क्या मनमोहनसिंह जी प्रधानमंत्री जैसे सम्माननीय पद के प्रतिष्ठा में ऐसे बयान देकर बट्टा लगाने के साथ-साथ देश कि जनता को धोखा दे रहें हैं ..? अगर ऐसा है तो यह बेहद खतरनाक है ....
आपलोग भी इस मुद्दे पर अपने विचारों के रूप में F.I.R यहाँ दर्ज जरूर करें ...

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

क्या राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदों पर बैठा व्यक्ति अगर कानून के खिलाप आचरण कर रहा हो तो उसके खिलाप आवाज उठाना जुर्म है ....?


बड़ा अजीब सवाल है क़ी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का पद बड़ा या पदों पर बैठा व्यक्ति ...?

ये एक ऐसा सवाल है जो ह़र हिन्दुस्तानी को आज परेशान कर रहा है देश और समाज के दर्दनाक अवस्था को महसूस करने के बाद | ह़र कोई आज यह सोच रहा है क़ी क्या देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदों पर बैठे व्यक्ति के लिए कानूनसंगत आचरण करना जरूरी नहीं है ? क्या ऐसा नहीं करने वालों पर आपराधिक लापरवाही के साथ-साथ देश के संबैधानिक पदों क़ी गरिमा व सम्मान को ठेस पहुँचाने तथा अधिकार के दुरूपयोग का मामला नहीं चलाया जाना चाहिए ? 
अब सवाल उठता है क़ी जब संबिधान में यह व्यवस्था है क़ी कानून क़ी नजर में सब बराबर है तो देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदों पर बैठे व्यक्ति पर सीधे आरोप कोई नागरिक क्यों नहीं लगा सकता है ?
जब कलाम साहब राष्ट्रपति थे तो उन्होंने राष्ट्रपति के पद पर बैठे व्यक्ति को भी लोकपाल के दायरे में लाने क़ी बात कही थी जो एक सच्चे राष्ट्रपति के उतरदायित्व को दर्शाता है | क्योंकि जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ही अपने कार्यों क़ी जाँच का अधिकार किसी आम नागरिक को नहीं देना चाहेंगे तो देश में पारदर्शिता और कानून क़ी नजर में समानता का सिद्धांत को कैसे लागू किया जा सकता है |

आज सारा देश शरद पवार के बारे में क्या-क्या नहीं बोलता है रोज अख़बारों में इस भ्रष्ट मंत्री के कारनामों क़ी चर्चा होती है | सुप्रीमकोर्ट ने भी अनाज क़ी बर्बादी को गम्भीर अपराध माना | जिसके लिए कृषि मंत्री के नाते शरद पवार अपराधी हैं या शरद पवार जाँच कर उन अधिकारियों को तुरंत बर्खास्त कर आरोप पत्र दाखिल करें जिनकी लापरवाही से महंगाई बढ़ी है और अनाजों क़ी बर्बादी हुई है ,ऐसा करना शरद पवार क़ी जिम्मेवारी है  और इसी काम के लिए उनको तनख्वाह मिलती है | ह़र विभाग में सतर्कता विभाग के होते हुए भी गम्भीर घोटाले हो रहें है जिससे साबित होता है क़ी ऊपर से ही भ्रष्टाचार को संरक्षण और सुरक्षा प्रदान क़ी जा रही है | 

क्या मंत्री सिर्फ संसद के प्रति जिम्मेवार है ? जनता के लिए न्याय,ईमानदारी और कर्तव्यों के प्रति उनकी कोई बफादारी व जिम्मेवारी नहीं ? शरद पवार का बयान क़ी वे सुप्रीमकोर्ट नहीं बल्कि संसद के प्रति जवाबदेह हैं ,यह बयान अपने आप में अपराध है और देश के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री इसे साबित नहीं करना चाहें तो न्याय अपने आप में सवाल है ?
देश के प्रधानमंत्री योजना आयोग के अध्यक्ष हैं लेकिन नरेगा,इंदिरा आवाश या किसान ऋण कोई भी योजना इस तरह से नहीं बनाई जा रही जो असल जरूरतमंद को फायदा पहुंचा सके | क्या हमारे योजना आयोग के नीती निर्माताओं में इतनी काबिलियत नहीं है क़ी वे ऐसी  योजना बना सके जिसमे भ्रष्टाचार को रोकने वाली कई स्तरीय सुरक्षा हो ? या हमारे प्रधानमंत्री भ्रष्टाचारियों और सत्ता के दलालों के आगे लाचार है ? पिछले दिनों नीरा राडिया कांड के बाद चर्चा जोड़ों पर थी क़ी "इस देश को संसद नहीं अब पैसा चलाएगा" ये बातें छोटी बातें नहीं हैं ,ये बातें प्रधानमंत्री के कार्यप्रणाली में आपराधिक लापरवाही के संकेत देते हैं ? क्या इसके लिए प्रधानमंत्री से देश क़ी जनता सिर्फ चुनाव में ही पूछ सकती है या किसी भी वक्त प्रधानमंत्री के ऊपर कर्तव्य निर्वाह और अधिकार के प्रयोग में गम्भीर लापरवाही के लिए अदालत में जनहित याचिका के जरिये देश के प्रधानमंत्री से पूछ सकती है ? कोई ऐसा कानून नहीं जो यह कहता हो क़ी प्रधानमंत्री किसी आरोपों का न्यायसंगत व तर्कसंगत जवाब नहीं देंगे |

देश के राष्ट्रपति पद पर बैठा व्यक्ति देश के सेना का सर्वोच्च सेनापति होता है ,न्याय क़ी मर्यादा क़ी रखवाली का भी सर्वोच्च जिम्मा देश के राष्ट्रपति पर ही है | क्या सेना में बढ़ते भ्रष्टाचार और न्याय व्यवस्था में अन्यायिक देरी के समाधान तथा न्याय पैसों के बल पर नहीं बल्कि सत्य और ईमानदारी के आधार पर मिले इसकी कोई ठोस व्यवस्था नहीं होने के लिए देश के राष्ट्रपति से जवाब नहीं माँगा जाना चाहिए ? देश के राष्ट्रपति को नैतिकता के नाते यह भी अधिकार है क़ी देश में कानून व्यवस्था क़ी हालात के जमीनी हकीकत क़ी समीक्षा कर उसके सुधार के लिए सुझाव देकर प्रधानमंत्री को आगाह करे ,आज देश में भय और अराजकता का इतना गम्भीर माहौल बना हुआ है क़ी लोग थाने में शिकायत लिखवाने तक जाने से डरतें हैं ,क्या ऐसे हालात के लिए देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को दोष नहीं दिया जाना चाहिए ?
निश्चय ही भ्रष्टाचार क़ी पहुँच और असर अब देश के इन दो सर्वोच्च पदों को भी प्रभावित कर रहा है | जनता को जागरूक होने क़ी जरूरत है और निडरता से पत्र और इ.मेल के जरिये इन दोनों पदों पर बैठे व्यक्ति को भी उनके कर्तव्यों और अधिकारों के समुचित प्रयोग के प्रति समय-समय पर आगाह करने क़ी जरूरत है और उनकी कमियों को भी उन्हें बताने क़ी जरूरत है |

कहते है क़ी अगर कोई कमी बताने वाला ना हो तो अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी सुख-सुविधा के मद में अपने कर्तव्यों को भूल जाता है और अधिकारों का दुरूपयोग करने लगता है और इस वक्त देश क़ी स्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है क़ी  हमारे देश के इन दोनों पदों पर बैठे व्यक्तियों को उनकी कमियों को बताने क़ी सख्त आवश्यकता है | 

जनहित और मानवहित में किसी भी व्यक्ति क़ी जाँच करने तथा किसी पर भी सच्चा आरोप लगाने से कोई भी कानून अगर रोकता है तो वह कानून संबिधान क़ी उस अबधारणा क़ी अवमानना है क़ी कानून क़ी नजर में ह़र कोई बराबर है तथा ह़र किसी को कानून क़ी एक सामान सुरक्षा मिलनी चाहिए | ये अलग बात है क़ी भ्रष्टाचार क़ी व्यापकता और दोषियों पर कार्यवाही क़ी व्यवस्था के मृतप्राय हो जाने से जमीनी हकीकत कुछ और है और इसके लिए भी हमसब ही जिम्मेवार हैं ...हम किसी से कुछ नहीं पूछते हैं और ना ही किसी को उसकी जिम्मेवारी के ईमानदारी से निर्वाह के लिए बाध्य करते है ,जबकि  प्रतिदिन के बिभिन्न प्रकार के टेक्स से हम सत्ता में बैठे ह़र व्यक्ति को तनख्वाह देते हैं ...चाहे वह प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति ...

लेकिन क्या इस स्थिति को चुप-चाप देखने से सुधारा जा सकता है या जनहित में सत्य के लिए निड़र होकर जो भी दोषी या लापरवाह हो के खिलाप आवाज को बुलंद करने से ? फैसला आपको करना है .... सत्यमेव जयते 

नोट-चित्र जनहित क़ी उपयोगिता के चलते गूगल से साभार प्रकाशित है ,किसी के एतराज पर हटा दिया जायेगा ..

शनिवार, 17 जुलाई 2010

हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी कितने इमानदार,देशभक्त व बहादुर है ,यह बात इस पत्र को पढ़कर साबित हो जाता है .....आप भी जरूर पढ़ें ....

किसी भी पद कि गरिमा उस पर बैठे सच्चे,अच्छे,देशभक्त व इमानदार लोगों से होती है ,क्या हमारे देश में प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति पद पे पद कि गरिमा के अनुसार व्यक्ति विराजमान है ......? जवाब जरूर दीजिये इस असहाय मगर बहादुर माँ के पत्र को पढ़कर .....शहीद चंद्रशेखर और उनकी माँ को हमारा हार्दिक सलाम ...
शहीद चंद्रशेखर जिसने इस देश कि व्यवस्था के कोढ़ से लड़ते हुए अपनी आहुति दे दी ,जो काम इस देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को करना चाहिए था वो काम इस बहादुर व निडर शहीद ने किया | ऐसे लोग इस देश व समाज में सत्य,न्याय,देशभक्ति व ईमानदारी के असल रक्षक है ना कि आज के हमारे देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति जो एक शहीद के हत्यारों को पकड़ कर फांसी तक नहीं दे सकते | लानत है ऐसे प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति पर ....


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'' प्रधानमन्त्री महोदय , आपका पत्र और बैंक ड्राफ्ट मिला |  
आप शायद जानते हों कि चंद्रशेखर मेरी इकलौती संतान था | उसके सैनिक पिता जब शहीद हुए थे , वह बच्चा ही था | आप जानिये , उस समय मेरे पास मात्र १५० रूपये थे | तब भी मैंने किसी से कुछ नहीं माँगा था | अपनी मेहनत और इमानदारी की कमाही से मैंने उसे राजकुमारों की तरह पाला था | पाल पोस कर बड़ा किया था और बढियां से बढियां स्कूल में उसे पढ़ाया था | मेहनत और इमानदारी की वह कमाही अभी भी मेरे पास है | कहिये , कितने का चेक काट दूँ |
     लेकिन महोदय , आपको मेहनत और इमानदारी से क्या लेना देना ! आपको मेरे बेटे की 'दुखद मृत्यु' के बारे में जानकार गहरा दुःख हुआ है , आपका यह कहना तो हद है महोदय ! मेरे बेटे की मृत्यु नहीं हुई है | उसे आप ही के दल के गुंडे , माफिया डॊन सांसद शहाबुद्दीन ने - जो दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद का दुलरुआ भी है - खूब सोच-समझकर व योजना बनाकर मार डाला है | लगातार खुली धमकी देने के बाद , शहर के भीड़-भाड़ भरे चौराहे पर सभा करते हुए , गोलियों से छलनी कर देने के पीछे कोई ऊँची साजिश है | प्रधानमंत्री महोदय ! मेरा बेटा शहीद हुआ है वह दुर्घटना में नहीं मरा है |
    मेरा बेटा कहा करता था कि मेरी माँ बहादुर है | वह किसी से भी डरती नहीं , वह किसी भी लोभ-लालच में नहीं पड़ती | वह कहता था - मैं एक बहादुर माँ का बहादुर बेटा हूँ | शहाबुद्दीन ने लगातार मुझे कहलवाया था कि अपने बेटे को मना कर लो नहीं तो उठवा लूंगा | मैंने जब यह बात उसे बतलाई तब उसने यही कहा था | ३१ मार्च की शाम को जब मैं भागी भागी अस्पताल पहुँची वह इस दुनिया से जा चुका था | मैंने खूब गौर से उसका चेहरा देखा , उसपर कोई शिकन नहीं थी | डर या भय का कोई चिह्न नहीं था | एकदम से शांत चेहरा था उसका , प्रधानमंत्री महोदय लगता था वह अभी उठेगा और चल देगा | जबकि , प्रधानमंत्री महोदय ! उसके सर और सीने में एक-दो नहीं सात-सात गोलियां मारी गयी थीं | बहादुरी में उसने मुझे भी पीछे छोड़ दिया |
    मैंने कहा न कि वह मर कर भी अमर है | उस दिन से ही हज़ारों छात्र-नौजवान , जो उसके संगी-साथी हैं , जो हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी , मुझसे मिलने आ रहे हैं | उन सबमें मुझे वह दिखाई देता है | हर तरफ , धरती और आकाश तक में , मुझे हज़ारों-हज़ार चंद्रशेखर दिखाई दे रहे हैं | वह मरा नहीं है प्रधानमंत्री महोदय !
    इसीलिये इस एवज में कोई भी राशि लेना मेरे लिए अपमानजनक है | आपके कारिंदे पहले भी आकर लौट चुके हैं | मैंने उनसे भी यही सब कहा था | मैंने उनसे कहा था कि तुम्हारे पास चारा घोटाला का , भूमि घोटाला का , अलकतरा घोटाला का जो पैसा है , उसे अपने पास ही रखो | यह उस बेटे की कीमत नहीं है जो मेरे लिए सोना था , रतन था , सोने व रतन से भी बढ़कर था | आज मुझे यह जानकार और भी दुःख हुआ कि इसकी सिफारिश आपके गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्त ने की थी | वे उस पार्टी के महासचिव रह चुके हैं जहां से मेरे बेटे ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी | मुझ अनपढ़ -गंवार माँ के सामने आज यह बात और भी साफ़ हो गयी कि मेरे बेटे ने बहुत जल्दी ही उनकी पार्टी क्यों छोड़ दी थी | इस पत्र के माध्यम से मैं आपके साथ-साथ उनपर भी लानतें भेज रही हूँ जिन्होंने मेरी भावना के साथ घिनौना मजाक किया है और मेरे बेटे की जान की ऐसी कीमत लगवाई है | 
    एक माँ के लिए - जिसका इतना बड़ा और इकलौता बेटा मार दिया गया हो और , जो यह भी जानती हो कि उसका कातिल कौन है - एकमात्र काम जो हो सकता है , वह यह है कि कातिल को सजा मिले | मेरा मन तभी शांत होगा महोदय ! उसके पहले कभी नहीं , किसी भी कीमत पर नहीं | मेरी एक ही जरूरत है , मेरी एक ही मांग है - अपने दुलारे शहाबुद्दीन को 'किले' से बाहर करो , या तो उसे फांसी दो , या फिर लोगों को यह हक़ दो कि वे उसे गोली से उड़ा दें |
    मुझे पक्का विश्वास है प्रधानमंत्री महोदय ! आप मेरी मांग पूरी नहीं करेंगे | भरसक यही कोशिश करेंगे कि ऐसा न होने पाए | मुझे अच्छी तरह मालूम है कि आप किसके तरफदार हैं | मृतक के परिवार को तत्काल राहत पहुचाने हेतु स्वीकृत एक लाख रूपये का यह बैंक-ड्राफ्ट आपको ही मुबारक ! कोई भी माँ अपने बेटे के कातिलों से सुलह नहीं कर सकती | '' 
               पटना                                                                                    --- कौशल्या देवी 
       १८ अप्रैल १९९७                                                                        ( शहीद चंद्रशेखर की माँ )
                                                                                                           बिन्दुसार , सीवान 
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यह पत्र हमने अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी के ब्लॉग से साभार लिया है और इसे जनहित में हमने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया है | हमारा सभी ब्लोगरों से आग्रह है कि आप भी अपने ब्लॉग पर इस दर्दनाक व प्रेरक पत्र को प्रकाशित जरूर करें  .... यही सार्थक ब्लोगिंग है ... त्रिपाठी जी का यह पोस्ट अत्यंत सराहनीय है जिसके लिए हम उनका हार्दिक धन्यवाद भी करते है ....