गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

इस सूचना क्रांति के युग में भी ,कहिं हमें सूचना के अंधेरे कि ओर तो नहीं धकेला जा रहा है --?

                 
जब पैसे से सब बेचा और खरीदा जा रहा हो तो यह सवाल अहम् हो जाता है कि , जो सूचना हमें दी जा रही है या हम तक सूचना के बिभिन्न माध्यमों से पहुंचाई जा रही है ,वह वास्तब में एक सूचना है या हमें किसी ओर ले जाकर ,किसी के स्वार्थ सिद्धि कि तैयारी है / आज RTI कानून के रहते हुए 100% आवेदनों में से सिर्फ 27% आवेदनों पर आवेदन कर्ता को सूचना प्राप्त होती है और उसमे से भी कई झूठि और आधी अधूरी होती है ,क्यों  ?
इस सवाल का जवाब है नीयत में खोट और कहिं न कहिं दाल में काला जो जनता से छुपाया जाता है / आज मीडिया कहती है कि बिना व्यवसायिक हित के लिए काम किये वगैर मीडिया को जिन्दा नहीं रखा जा सकता / यह बात इस मायने से तो ठीक है कि ह़र सामाजिक,पत्रकारिता या जनकल्याण के संस्था  को चलाने के लिए आर्थिक आधार कि जरूरत पड़ती है ,लेकिन उस जरूरत में अगर संस्थापक का लोभ-लालच और पैसों कि भूख मानवता पे भारी हो तो उसका असल मकसद ही बदल जाता है और ऐसी स्थिति में उसके द्वारा पहुंचाई जा रही सूचना ,जो आम जनता तक पहुँच रही है वह पूरी तरह संदेहों के घेरे में आ जाती है /  पत्रकारिता कभी निड़र और समाज,देश व मानवता के प्रति पूरी तरह समर्पित लोगों का काम हुआ करता था / लेकिन आज पेट भरने कि मजबूरी,संचालकों के आदेश कि जी हजुरी और पैसे बनाने कि भूख कि भरपाई से पत्रकारिता का दम घुटता जा रहा है / इस बात कि सत्यता के लिए किसी सच्चे पत्रकार से उसके दर्द के बारे में पूछ कर देखिये / आज जमीन बेचने के लिए , मसाला बेचने के लिए ,भ्रष्टाचारियों को तर्क के हेर-फेर से बचाने के लिए भी अखवार और चेनल खुल रहें हैं /
आज मीडिया किसी समाज और देश कि सोच कि उपज से पैदा नहीं हो रहें हैं / बल्कि बीस-बीस हजार करोड़ कि संपत्ति जो गलत तरीके से जमा कि गयी है ,को सुरक्षित करने कि सोच से पैदा हो रही है /  कभी ऐसा भी हो सकता है कि पैसे कि भूख कि वजह से ऐसे सूचना माध्यम को चला रहे लोग हमें किसी गलत सूचना को प्रचारित कर हमें बेबकूफ बनाकर अपना और अपने ग्रुप का फायदा कराने का षड्यंत्र रच इस सूचना क्रांति के युग में भी हमें सूचना के अंधेरे कि ओर धकेलने का काम करे / 
                   पैसे कि जरूरत जीने के लिए तो सबको है पर इसी पैसे कि भूख जब सारी हदें पार कर जाता है तो सच्चाई,ईमानदारी,देश भक्ति और मानवता के किसी भी काम को करने से पहले मुनाफा का गुना-भाग करता है / ऐसी ही स्थिति के वजह से सच्चे पत्रकार या तो अपने आप को बदल रहें हैं या घुट-घुट कर ह़र वक्त जी रहें हैं / क्योंकि परिस्थितियाँ लगातार प्रतिकूल होती जा रही है /
                 इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही समाधान है कि अच्छे पत्रकार ऐसे चेनलों या अखवारों को छोड़कर पहले तो एकजुट हों फिर जनता से सीधा आर्थिक मदद मांगकर राष्ट्रिय स्तर पर एक स्वस्थ व सच्चा अखवार और चेनल स्थापित करें जिस पर जनता पूरी तरह विश्वास कर सके / 
      क्योंकि पत्रकारिता एक सबसे सशक्त माध्यम है ,सच्ची सूचना आम जनता तक पहुँचाने का और जिस दिन इस देश में खोजी पत्रकारिता फिर से जिन्दा होकर बिना बिके जनता तक सूचना पहुँचाने लगेगी उस दिन से इस देश में खुशहाली के नए सूरज का उदय होगा /  

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